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ज०वि०
| हो उर ॥ ४ ॥ अर्धवारे कोड हीरण तणी। माली को बक्साय ॥ वस्त्रा भूषणे ।। तोषे तस । कीधो ताम वीदाय ॥ ५॥ ॥ ढाल २ री ॥ बन्धव बोल मानो |
हो ॥ यह ॥ सर्वज्ञ मुनि आगम लखी। दोनों भूप हर्षाया हो ॥ धन्य दिन है ।। Pाज को । रोम २ विक्साया हो ॥ भविक समकित पाराघो हो ॥ आराधे सुर
तरु जिसी । अात्म कार्य साधो हो ॥ भविक ॥१॥ सेना सजन सहू सज किया। विधी वंदन चाल्या हो॥ पुरजन जनी वहू तंघहुवा । जतना से हाल्या हो॥ भ०॥ | २॥ देखी मुनि वाहण तज्या । मुख यत्ना कीनी हो । तिखुत्ता विधी वंदन कियो। | मति गुण रंग भीनी हो ॥ भ० ॥ ३॥ यथा योग्य वैठा सहू । ज्ञान सुणन का M रसीया हो ॥ परोपकारी मुनिवरा । बोधन तर चसीया हो ॥ भ० ॥ ४ ॥ अहो * भव्यो इन अात्म ने । भव भ्रमण के मांही हो ॥ अनन्त पुद्गल परावृतीया। दुर्लभ ।
देही पाइ हो ॥ भ०॥ ५ ॥ उपना क्षेत्र आर्य विषे । उत्तम कुल अवतारो हो । । आयु दीर्घ पूरण इन्द्रिय । देही निर्विकारो हो ॥ भ० ॥ ६॥ मिल्या निम्रन्थ