Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

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Page 163
________________ १५४ जवि अहो ॥ वीतराग नो मत स्याद्वादजो। तूं कहे ते हूं मानू छू साचो सही रेलो ॥ अहो ॥ पण सो ज्ञानान्तर होय जो। पाप में तो स्यादाद त्रिकाले छे नहीं रेलो ॥ ८॥ अहो ॥ यहां नहीं दया को पक्ष जो। यह तो पक्ष प्रत्यक्ष है संसारनो रेलो ॥ अहो ॥ नहीं जीव ऊगार्या कहेवाय जो । एतो गिनावै कीनी रक्षा परिवारनी रेलो ॥६॥ अहो ।नारी पुत्र राज काज जो। कधी न छोडूं धर्म श्रीजिन | राजनोरेलो॥अहो। यह पाया ऋद्धि अनन्त जो।वार अनन्ती हुवा अछे सहू साजनो रेलो ॥ १०॥ अहो ॥ कोण किसी को धन परिवार जो। सार न सरसी स्वार्थ । सरीयां कोइनी रेलो ॥ अहो ॥ स्वार्थिया सब जाणे जो । कर्म संचित संग श्रावै करणी होइनी रेलो ॥११॥ अहो॥ धर्म प्राप्ति दुर्लभ जो। सो पायो हूं महान् पुण्य ना जोगथी रेलो ॥ अहो ॥ दालिद्री चिन्तामणी जेमजो। न्हाखी ने कौण भोगे । विप्ति भोगथीरेलो ॥ १२ ॥ अहो ॥ मत कर यह उपदेश जो । मत आसाधर में । IN पूM अन्य देव नेरेलो ॥ अहो ॥ होणहार सोही होय जो । वाळू नहीं पुत्र नारी ।

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