Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

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Page 168
________________ म०वि० यम प्रहार भूल्या सो संभर्या । अहो सत्य कथन भगवन्त । इससे अनन्त गुणी १५६ । महा बेदन। भोगवी बार अनन्त ॥ देखो ॥ १७ ॥ इन बिचार में मन रमावे । W| तबही सुने समाचार ॥ राणी पूत्रों के ही मृत्यू पाये । करो ले जा संस्कार ॥ देखो ॥ १८॥ जले अंग पर क्षार के जैसे ।वीता नृप मन परताप ॥ तो भी तेह अखण्ड ध्वनी से । करे नवकार को जाप ॥ देखी ॥ १६॥ ज्यों २ Nवेदन वृद्धि पावै । त्यों त्यों भाव निर्मल ॥ अधिक २ अस्तिक जिनजी के। बचन में हुबे सबल ॥देखो॥२०॥ महा संकट में महा स्थिर रहे । धन्य विजय नृपाल॥ कहे अमोल बनरी यों अात्म। यह षोडशमी ढाल ॥ देखो ॥ २१ ॥ॐ॥ दोहा ॥ ता समय तेही गारूडी । धुणावतो निज सीश ॥ विजयराय ढिग आवीयो । देखतो दया जगीस १॥त्रासित मुद्रा से कहें। अरे अब तो जरा मान । नमन कर नाग देव नै । क्यों गमावै प्रान ॥ २ ॥ अति दुर्लभ | महा पुण्य सै । अपूर्व वक्त यह पाय ॥ लै लावौ दीर्घ आयु वर ।।

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