Book Title: Samyktotsav Jaysenam Vijaysen
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Rupchandji Chagniramji Sancheti

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Page 167
________________ जवि मर्म स्थानों नशों बन्धी जकडी । कीनो सर्व अंग डंस ॥ और अनेक लघु सर्प १५८ | आइ । बीटयों नृप अवसंश ॥ देख ॥ ६ ॥ चुट २ नृप तन ने तोडी । करे रक्त | मांस अहार ॥ मेरु ज्यों द्रढ ध्यानस्थ नृप हो । स्मरण करे नवकार ॥ १०॥ महा || N| विष पसरा सब ही तन में । दवाग्नि सा करूर ॥ जाने बज्र प्रहार करे है । को- | प्यो मघाव के असुर ॥ देखो ॥ ११ ॥ तीक्षण शस्त्रे अरी तन काटे । त्यों फटने लगा तन ॥ महा भयानक भोगे जो जाने । के जाने भगवन ॥ देखो ॥ १२ ॥ Nथर २ थर तन सब कम्पे । तरर २ छूटे रक्त ॥ तड २ सब नाडी टूटे । जेहर चढा | अति शक्त ॥ देखो ॥१३॥ प्रेक्षक को बोले जेष्ट नागसो । देखो दुष्ट के हवाल ॥ स्वजन पुरजन आदि जो रचना । दिग मुढ हुवे असराल ॥ देखो ॥ १४ ॥ अति वेदन से मुरछाइ पडे । पाडे भयानक चीस ॥ देखे सो अति त्रासित होवे । देव V कोपे क्या जगीस ॥ देखो ॥ १५ ॥ हरीत वदन दशन कृष्ण भये । तडफे जल बिन मीन ॥ साक्षात नरकसी वेदन । अनुभवे जाणी ते दिन ॥ देखो ॥ १६ ॥

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