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परिवार संग लीधाइ || श्रावकजी भी संग थाइ । ये सब बाग मझारे | पंच अभिगम योग्य धारे ॥ जरा ॥ १ ॥ सब मुनिवरों के तांइ । नृपादि सर्व वंद्याइ । ते श्रावक करडा रहाइ । वैठा सब गए योग्य स्थाने । उमंग मुनि वाणी सुणवाने ॥ जरा ॥ २ ॥ श्राचार्य सोध फरमावे | तत्वार्थ गहन दर्शावे । ते सुगम करी पर गमावे । श्रोता तल्लीन होवे सुणे के । श्रात्महित लै तासे लु के ॥ जरा ॥ ३ ॥ साधु किरिया खूब ब्रढडाइ | उत्सर्ग एकान्त स्थपाइ । न अपवाद जरा लगाइ । श्रोता सुण श्रर्य पाया । कहे धन्य जग निराया ॥ जरा ॥ ४॥ जो खड्ग धार पर चाले । सूक्ष्म ऐसा दोप टाले। सो टोटो क्यों करणी में घाले । भक्ति फल तं ही फरमाया । दान महात्म खूब द्रढ़ाया || जरा ॥ ५ ॥ श्रावक की किरिया बताइ । जो भेप धारी पालताइ । ये उत्कृष्ट श्रावक कहाइ ॥ सुणी सब धन्य २ तस कहता । भेषधारी भूमी देखी रहता ॥ जरा ॥ ६ ॥ फिर सम्यक्त्व को सरसाइ । जो नृपत चित्त में पाइ । केइ रागणीयों भी सुगाइ ॥ इत्यादि