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ज०वि०
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गारुडी करी नमस्कार | अत्यन्त नरमी अरजी करे | सुखो || नाग राया हो ॥ तुम सब सामर्थ देव । मोटा सोही क्षमा धरे ॥ नाग० ॥ ११ ॥ नाग ॥ जो नमे गुन्हेगार | तो अपराध भूले सबी || नाग० ॥ जेष्ट तणी यह है रीत । तेही आप धारो बी ॥ ना० ॥ १२ ॥ नाग० ॥ फरमावो आप हुकम । सोही करावुं इण कने ॥ नाग० ॥ हिवे तजो सब रोस । वारम्वार सो इम भने ॥ सुणो ॥ १३ ॥ गारु० ॥ मुझने नम्यो सब जगत् | यह शुष्क काष्ट ज्यों नमे नहीं ॥ गारु० ॥ गारु० ॥ विइ जो करे नमस्कार । तो सब दुःख हरुं सही ॥ गारु० ॥ १४ ॥ सुणो रायारे ॥ गारुडी कहे खुश होय । नमन करो नाग रायने ॥ सुणो रायारे ॥ सुणो० ॥ थोडे हुइ सब खेर । अबी दुःख जावै विरलायने ॥ सुणो रा० ॥ १५ ॥ गारुडी हो ॥ नृप कहे सुण मुझ बात । उठ जा तूं थारे घरे ॥ गारु० ॥ . गारु० ॥ जो ऐसा अभीमानी देव । विना काम नर्थ करे ॥ गारु० ॥ १६ ॥ गारु० ॥ येही कुदेव लक्षण | तास वंदन में नहीं करूं ॥ नहीं इण लोक की आस ।