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नु ॥ बडा ॥ ५ ॥ में दुर्भागी ही अंगी ने । रंभा किम दीजे ॥ हंसली श्रीवा वायस बन्धन | अन्याय किम कीजे ॥ बडा० ॥ ६ ॥ जो कदापि आप जबरी से । पुत्री मुझ देश ॥ श्रङ्गीकार सो नहीं कियो तो । क्या शोभा लेशो ॥ बडा ॥७॥ सामन्त परजा आवरण बोलेगा । ते सह्या न जाशे ।। इस कारण मुझ ना कहो तो । सब जन सुख पासे ॥ बडा ॥ ८ ॥ सुन्दर मुझ से ग्रही न जावे । कारण सब जाणे ॥ चतुर सोड मोडण को जितनी । तित ना पग ताणे ॥ बडा ॥६॥ भाग्य पार जो वस्तु इच्छे । सो मूर्ख जग मांइ ॥ इसलिये में परशुं नाहीं । फिकर तजो राइ ॥ बडा ॥ १० ॥ बचन सुगड यों सुन वावन का । सब वर्य पाया ॥ प्रत्यक्ष चमत्कार यह देखो । निर्विषयी निर्माया ॥ बडा ॥ ११ ॥ * ॥ श्लोक ॥ कचित् गुणः रागी नरा । तत् गुणवन्त क्वचित् ॥ तत्वा गुणवन्त गुणे रक्ता । स्व गुण प्रेक्षा कचित् ॥ १ ॥ * ॥ ढाल ॥ गुणानुरागी होकर धरा धव । नरमी यों बोले || तुम सम गुणवन्ता निर्लोभी । न मिले जग खोले ॥ बडा ॥ १२ ॥ निश्चय
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