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थाकी खीजी इम ऊचरे जी बाइ। सबसे अधिक गुणधाम ॥ वरनो तो वर ये कूबडोजी। नहि मिले ऐसो अन्य ठाम ॥ सु ॥२०॥ दासी वेण देवी केणथी जी। कुब्ज गले डाली वरमाल ॥ऋषि अमोले आर्श्वयनीजी। कांइ। भाखी यह बारवी ढाल ॥सु॥२१॥ * ॥दोहा॥ सर्व राय असुरक्त भये । कहे मूर्ख कन्या येह ॥ मरोल सम महीपति तजी । वायस भिक्षु के धर्यो नेह ॥१॥ पण जुगतो नहीं राय ने । देनी नीच जाति | ने बाल॥ खोशी लो कुब्ज कने थकी शीघ्रये वरमाल॥२॥ कोपातुर वदे नरवरा । छोड कुब्ज वरमाल ॥तुझ जोगी कन्या नहीं। भाग्य प्रमाणे चाल ॥३॥ कुब्ज उत्तर प्रापे नहीं ।तब अति लाइ रीस । कहे रे अर्प वरमाल शीघ्र । नहीं तो छेदां सीस ॥४॥ | समता सायर झीले कुजजी । वदे नहीं एकबाच ॥ धैर्य से धोका टले । जरान
लागे अांच ॥५॥॥ ढाल २३ वी॥ राघव प्रावीया हो ॥ यह०॥ राजिन्द प्रावीया । व हो। होकर सबही शूर ॥टेर॥ लेइकर करवाल नागी। बोले बचन बिकराल ||
अरे धीठा हीये चीठा । छोउ शीघ्र वरमाल ॥रा०॥१॥ गम्भीर वयण तब कुब्ज