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ज०वि० ३०- १७॥ धर्म ऋषि धर्म ध्यान से चढीया । शुक्ल वरी शुक्ल भैया हो ॥ कर्म हटाइ Lal केवल पाइ । मुक्ति गैया हो ॥ ला०॥ १८ ॥ सतीयों ऊंचे स्वर्ग सिधाइ । थोडे | 4 भवे मुक्ति पाइ हो ॥ जन्म सफल जो आत्मा तरे । अवसरे भाइ हो ॥ ला०॥
१६ ॥ समकित उत्सव जय विजय रासे । पुण्य अधिकार खण्ड पहलो हो ॥ ढाल
सत्ताइस नाना रसमय कीनो मेलो हो॥ गुरु प्रसादे कहे अमोलक । पुण्य का संचय - करीये हो ॥ तो जय विजय कुमर के जैसे । सुख शीघ्र वरीये हो ॥ला०॥२१॥ ॐ |॥ हरी गीत छन्द ॥ श्रीसमकितोत्सव सर्व सुखकर पुण्य फल दशाइया ॥ जय विजय दोनों पुण्य प्रतापे । अखूट ऋद्धि सुख पाइया ॥ ऐसा जाण सुखार्थि प्राण निर्वद्य पुण्य संग्रह करो।कहे अमोलक तस पसाये, धर्मकर शिव सुख वरो॥१॥ ॥ परम पूज्य श्रीकहानजी ऋषिजी महाराज के सम्प्रदाय के बाल ब्रह्मचारी मुनिश्री अमोलक ऋषिजी महाराज रचित-समकितोत्सव-जय विजय
चरित्र का पुण्य अधिकार नामक पूर्वार्ध खण्ड समाप्तम् ॥