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ज०वि० देवो नगर में दोंडी पीटाइ । इनाम श्रेष्ट कांजे जहारो॥ पु॥ १३ ॥ जो खुटी
नहीं होसी अायुरासी । तो पुण्यात्म कोइक अासी । और तो वस्य नहीं लगारो | ॥ पु॥ १४ ॥ नरेश रे बात पंसद आइ । तत्क्षीण हुकम सो फरमाइ । शीघ्र करो प्रसिद्ध नगर मझारो ॥ पु ॥ १५ ॥ जो बाइ का दुःख गमावे । तेहने बाइM यह परणावे । दायजे दे क्रोड दीनारो ॥ पु ॥ १६ ॥ योंही तव पउह बजाबाइ । सुणी ललचाइ घणा अायाइ । पण पुण्य विन किम मिले ऐसी नारो॥ पु॥१७॥ जयजी उद्घोषणा श्रवण सुणी । तत्क्षीण हर्ष्या चिन्ताधुणी ।मुझ पास औषधी श्रेयकारो ॥ पु॥ १८ ॥ पउह छवी राज में अाया। केइ तरह ढोंग जमाया ।
आडम्बरे होवे मनवारो ॥ पु ॥ १६॥औषधी पखाली पाणी मांही । दीनी कमरी 12. ने पीलाइ । भाग्यो व्यन्त्र पाडी किलकारो ॥ पु॥ २० ॥ तत्क्षीण कुमरी साबध । होइ । देखी परिवार सब होइ । प्रत्यक्ष देख्यो चमत्कारो ॥ पु ॥ २१ महा पुण्य
वन्त जय जीने जाण्या । लक्षण संस्थान रूपे यह छाण्या । जोगी जोडीये करो