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ज०वि० आदर दीजीये ॥ १३ ॥ उत्तम नर ते, प्रार्थना भंगे नहीं । आप हम इच्छा, यह
| पूर्ण करो सही ॥ चाल ॥ पूर्ण करो सब इच्छा महारी, मणी आप यह लीजीये।
| मणी मेली कुमर पासे हम घर पावन कीजीये। लेइ मणी कुमर हा परख्यो | कपट अक्का तणो। कहे वक्ता सुणो श्रोता । कुमर विचक्षण है घणो ॥ १४ ॥ | प्रीति संभारी हो कामलंता तणी । कोप न कीधो हो हुलस्यो मिलवा भणी ॥ चाल ॥ मणी मिली प्यारी हिली । सुख सह चिन्त्यो पाछलो । कहे अवसर देख प्रास्युं । तुम पधारो निज स्थलो । अक्का घर गई खुशी थइ ॥ ढाल एकादश विषे । कहे वक्ता सुणो श्रोता । जोडी यह अमोलक रिषे ॥ १५ ॥ दोहा ॥ अक्का गया तदनंतरे । कुमर पड्या मोह फंद । कामलता मन में वसी । धिक्क काम मतिमंद ॥ १॥ स्वसुर पक्ष निज कुल की । लज्जा मर्यादा तोड । काम | लता सदने चल्या । राज कन्या को छोड ॥ २॥ जयजी अाया देख के । ह
यो गणिका परिवार । अति सन्मान दीधो सभी । आज तूठा किरतार ॥ ३॥ ||