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ज०वि० करायारे लो॥ पु०॥ १४ ॥ जय भाइने जरा विसरे नाहीं । क्षीण २ चित्ते आइरे । २६ लो। राज साहेबी शुन्य लखाइ। पण रह्या फासे फसाइरे लो॥ पु०॥ १५ ॥ पुत्र
तणी परे प्रजा ने पाले। नीति प्रमाणे चालेरे लो। सज्जन जन न घणाही सुहावे । दुशमण ने मन सालेरे लो ॥ पु० ॥ १६ ॥ निज राज में हिंसा बन्ध कराइ । कु. रिवाज दीया मिटाइरे लो। न्याय चाले ने सहुने चलाइ। यों सुखी करी प्रजा
ताइरे लो ॥ पु०॥ १७ ॥ दान शाम विद्या शाळा स्थापाइ । अनाथालय की । [१] धाइरे लो। ओषध शाला धर्म शाला थी। कीर्ति विश्व फेलाइरे लो॥पु०॥ १६ ॥
पुण्य पसाय जे संपति पाइ । पुनः ते पुण्य में लगाइरे लो। पुण्य से पुण्य की । बृद्धि थाइ । पुण्य सदाइ सुख दाइरेलो ॥ पु०॥ १६ ॥.यों रहे इहां सदा सुख । मांही। बीजयजी राज पद पाइरेलो। सम्यक्त्व उत्सवे ढाल यह सप्तमी । ऋषी अमोलक गाइरे लो ॥ पु० ॥ २१ ॥ दोहा ॥ जयजी रही प्रत लिख विषे । देख्या । | सहू विरतंत ॥ बंधव भूप हुवो लखी। हुवा खुशी ते अत्यन्त ॥ १ ॥ पण इच्छे ।