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ज०वि०
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जोगी । हे जी करसो उपकार || पु० ॥ १३ ॥ प्रथम मंत्र यह लीजिये । कीजिये सात दिन जाप । अष्ट दिने निश्चय पावसो । महा राज्य ऋद्धि श्रमाप ॥ पु० ॥ १४ ॥ दूसरी मणी यह अमूल्य छे । इसे रखे जब मुख मझार । रूप होवे धारे जिसो | उड जावे गगन मझार ॥ पु० ॥ १५ ॥ पखाली पाणी पावतां । स्थावर जंगम विष करे दूर । सामग्री युत भोजन दे सहू । वली इच्छित ऋद्धिपूर ॥ पु० ॥ १६ ॥ तीसरी जडी महा औषधी यह । जो होवे शास्त्र अग्नि घाव | पशुदंश व्यन्तर दुःख ने । हरे लगायां अटल उपाव ॥ ५० ॥ १७ ॥ यह थोड़ी सेवा माहेरी । बहु जाणी करो अंगीकार ॥ कुँवर अचिन्त महालाभ जो । हियड़े हर्षे अपार ॥ ० ॥ १८ ॥ अग्रह सत्कारे ते गृही | सन्मान्यो जुगल ने अपार ॥ पर संसी भक्ति घणी । वली मान्यों प्रोढ उपकार ॥ पु० ॥ १६ ॥ हर्षित हुवा दोनों घणा जी । सुणी कुमर ना बचन । नमी गया निज स्थानके । अर्धी ने तिहुं रतन ॥ ५० ॥ २० ॥ यों पुण्य के प्रभाव से । अल्प दुःखे पावे महा सुख