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वेदे चित्त में । फल येही पाया विज्ञान ॥ पुण्य ॥ ५॥ लघु बन्धव निद्रित भया
जी। जेष्ट छांय निश्चिन्त । जय जी पड़े विचार में । पूर्व पश्चात् केइ चिन्तित ॥ । पुण्य ॥ ६॥ तेहीज वट ना वृक्ष पे जी। यक्ष युगल मुखे रेय । देखी दोनों
पुण्यात्म को । यक्षणी कर जोडी केर ॥ पु०॥७॥ प्राणेश अाज अपने घरे । हुवा पाहूणा राज कुमार । ज्ञानी गुणी धर्मात्मा । योग्य करो यांरो सत्कार ॥
पु०॥८॥ यक्ष कहे सुगुणी प्रिया । वक्ते भली चेताइ मोय । घर आया मा 12] जाया सारीखा । हूं तोषु हिवणा दोय ॥ पु०॥६॥ त्रिजगे मिलणी दोहली। । तीनों वस्तु है मुझ पास । ते इनके अर्पण करी । हूं तो पूरुं महारी अास ॥ पु०
॥ १०॥ हर्षी दम्पति मानव रूपे । प्रकटे जयजी ने पास । नमन कियो प्रेमातुरा। नरभी ने करे अरदास ॥ पु०॥ ११ ॥ भले पधार्या पाहुणा। आज पवित्र प्रांगण | कीध । हम जंगली भक्तिसी करां । तुम भुक्ता हो राज रिध ॥ पु०॥ १२॥ अमूल्य वस्तु त्रिहूं मुझ कने । कृपा करी करो अंगीकार । आप जैसा पुण्यात्म के