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समयसार
अर्थ- जो नित्य है अर्थात् जिसमें कभी ह्रास नहीं होता, जिसमें समस्त अङ्ग निर्विकार भाव से अच्छी तरह स्थित हैं, जिसका स्वाभाविक सौन्दर्य अपूर्व है तथा क्षोभरहित समुद्र के समान जान पड़ता है ऐसा जिनेन्द्र भगवान् का उत्कृष्ट रूप जयवंत है।।२६।।
इस प्रकार शरीर का स्तवन करने पर भी उसके अधिष्ठाता तीर्थंकर भगवान् का स्तवन नहीं होता, क्योंकि उनकी आत्मा में लावण्य आदि शरीर के गणों का अभाव है।।३०।।
तब निश्चय से स्तुति का क्या स्वरूप है? यही दिखाते हैं-उसमें सर्वप्रथम ज्ञेय-ज्ञायक के संकरदोष का परिहार करते हुए निश्चयस्तुति को बतलाते हैं
जो इंदिये जिणित्ता णाणसहावाधियं मुणदि आदं । तं खलु जिदिदियं ते भणंति जे णिच्छिदा साहू ।।३१।।
अर्थ- जो इन्द्रियों को जीतकर ज्ञानस्वभाव से अधिक (असाधारण) आत्मा को जानता है निश्चयनय में स्थित साधु उसे जितेन्द्रिय कहते हैं।
विशेषार्थ- आत्मा यद्यपि अनादि अनन्त, चैतन्यस्वरूप, अमर्त्तित्व आदि गुणों का पिण्ड है तथापि अनादिकाल से ही उसके साथ पौद्गलिक मूर्त कर्मों का सम्बन्ध हो रहा है। यहाँ यह तर्क नहीं करना चाहिये कि अमूर्त आत्मा के साथ मूर्त्त कर्मों का सम्बन्ध कैसे हो गया? क्योंकि जिस प्रकार अमूर्त ज्ञान में रूपादि मूर्त पदार्थ भासमान होते हैं उसी प्रकार अमूर्त आत्मा का मूर्त कर्मों के साथ एकक्षेत्रावगाह रूप बन्ध होने में कोई बाधा नहीं है। यहाँ कोई फिर यह शङ्का करे कि अमूर्त ज्ञान में रूपादिक भासमान ही तो होते हैं कुछ रूपादिक का उसमें प्रवेश तो नहीं हुआ। जैसे दर्पण में मयूर का प्रतिबिम्ब दिखता है किन्तु दर्पण में मयूर नहीं चला गया? इस शङ्का का उत्तर यह है कि इसी तरह आत्मा का मूर्तिक पुद्गल कर्मों के साथ तादात्म्य नहीं हो जाता, किन्तु मात्र एकक्षेत्रावगाह रूप सम्बन्ध रहता है और इसका कारण भी विभावनाम की शक्ति है जो कि जीव और पुद्गल इन दो ही द्रव्यों में है। अत: मूर्तिक के साथ अमूर्तिक आत्मा का बन्ध मानने में कोई आपत्ति नहीं। दूसरी बात यह है कि निश्चय से आत्मा के साथ मूर्त्त कर्मों का सम्बन्ध है ही कहाँ? क्योंकि निश्चयनय तो कहता है कि आत्मा अबद्धस्पृष्ट है उसका कर्मों के साथ सम्बन्ध कैसे हो सकता है? हाँ, व्यवहारनय से आत्मा का कर्मों के साथ निमित्तनैमित्तिक अथवा एकक्षेत्रावगाह रूप बन्ध स्वीकृत किया जाता है। सो व्यवहारनय से आत्मा भी मूर्तिक कहा गया है। अत: मूर्तिक का मूर्तिक के साथ सम्बन्ध होने में क्या वाधा है?
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