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समयसार
स्वयं बन्धस्वरूप हैं। इसलिये ज्ञानस्वरूप अपना होना ही अनुभूति है। इस पद्धति से बन्ध और मोक्ष का विधान कहा गया है।।१०५।।
अब फिर भी पुण्यकर्म के पक्षपाती को समझाने के लिये कहते हैं
परमट्ठबाहिरा जे ते अण्णाणेण पुण्णमिच्छति।
संसारगमणहे, वि मोक्खहेडं अजाणंता ।।१५४।।
अर्थ- जो परमार्थ से बाह्य हैं अर्थात् ज्ञानात्मक आत्मा के अनुभवन से शून्य हैं वे अज्ञान से संसारगमन का कारण होने पर भी पुण्य की इच्छा करते हैं तथा मोक्ष के कारण को जानते भी नहीं हैं।
विशेषार्थ- इस संसार में कितने ही जीव हैं जो समस्त कर्मसमूह के नष्ट होनेपर प्रकट होनेवाले मोक्ष की इच्छा रखते हुए भी मोक्ष के हेतु को नहीं जानते हैं। यद्यपि वे मोक्ष के हेतुभूत, सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रस्वभाव परमार्थभूत ज्ञान के होने मात्र, तथा एकाग्रतारूप लक्षण से युक्त, समयसारभूत, सामायिकचारित्र की प्रतिज्ञा करते हैं तो भी दुरन्तकर्मसमूह के पार करने की असमर्थता से जिसमें परमार्थभूत ज्ञान का अनुभवन ही शेष रह गया है, ऐसे आत्मस्वभावरूप वास्तविक सामयिकचारित्र को प्राप्त नहीं हो पाते। ऐसे जीव यद्यपि अत्यन्त स्थूल संक्लेशपरिणामरूप कर्म से निवृत्त हो जाते हैं तो भी अत्यन्त स्थूल शुभपरिणामरूप कर्मों में प्रवृत्त रहते हैं अर्थात् अशुभ कार्यों को तो छोड़ देते हैं, परन्तु शुभ कार्यों में प्रवृत्ति करते रहते हैं। वे कर्मानुभव की गुरुता और लघुता की प्राप्ति मात्र से संतुष्टचित्त रहते हैं अर्थात् कर्म के तीव्रोदय के बाद जब मन्द उदय आता है तब उसी में संतुष्ट होकर रह जाते हैं, उस मन्दोदय को भी दूर करने का प्रयास नहीं करते हैं। तथा स्थूल लक्ष्य होने से समस्त क्रियाकाण्ड को मूल से नहीं उखाड़ते अर्थात् बुद्धिगोचर संक्लेशरूप क्रियाकाण्ड को तो छोड़ देते हैं, परन्तु अबुद्धिगोचर मन्दकषाय के उदय में जायमान शुभ क्रियाकाण्ड को छोड़ने में असमर्थ रहते हैं। वे स्वयं अज्ञानरूप होने से केवल अशुभ कर्म को तो बन्ध का कारण जानते हैं, परन्तु व्रत, नियम, शील, तप आदि शुभकर्म को बन्ध का कारण नहीं जानते, किन्तु उसे मोक्ष का कारण मानकर स्वीकार करते हैं।
यहाँ आचार्य महाराज ने कहा है कि जो मनुष्य परमार्थ ज्ञान से रहित हैं वे अज्ञानवश मोक्ष का साक्षात् कारण जो वीतराग परिणति है उसे तो जानते नहीं हैं
और पुण्य को मोक्ष का कारण समझकर उसकी उपासना करते हैं जब कि वह पुण्य संसार की प्राप्ति का कारण है। कषाय के मन्दोदय में होनेवाली जीव की जो
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