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समयसार
एवं तु णिच्छयणयस्स भासियं णाणदंसणचरित्ते। सुणु ववहारणयस्स य वत्तव्वं से समासेण ।।३६०॥ जह परदव्वं सेडिदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं जाणइ णाया वि सयेण भावेण।।३६१।। जह परदव्वं सेडिदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं पस्सइ जीवो वि सयेण भावेण ।।३६२।। जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं विजहइ णाया वि सयेण भावेण।।३६३।। जह परदव्वं सेडदि हु सेडिया अप्पणो सहावेण। तह परदव्वं सद्दहइ सम्मादिट्ठी सहावेण ।।३६४।। एवं ववहारस्स दु विणिच्छओ णाणदंसणचरित्ते। भणिओ अण्णेसु वि पज्जएसु एमेव णायव्यो।।३६५।।
अर्थ- जैसे सेटिका (श्वेतिका) सफेदी करनेवाले कलई-चूना अथवा खड़िया मिट्टी आदि सफेद पोतनी भित्ती आदि परद्रव्य की नहीं है किन्तु सेटिका स्वयं सेटिका है अर्थात् भित्ति आदि को सफेद करने से सेटिका सेटिका नहीं है, किन्तु सेटिका स्वयं शुक्लगुणविशिष्ट सेटिका है। वैसे ही ज्ञायक जो आत्मा है वह स्वकीय स्वरूप से भिन्न परपदार्थों को जानने से ज्ञायक नहीं है किन्तु स्वयं ज्ञायक है।
जिस प्रकार सेटिका, भित्ति आदि परद्रव्य की नहीं है। किन्तु सेटिका स्वयं सेटिका है उसी प्रकार दर्शक जो आत्मा है वह पर के अवलोकन से दर्शक नहीं है किन्तु स्वयं दर्शक है।
जिस तरह सेटिका, भित्ति आदि परद्रव्य की नहीं है किन्तु सेटिका स्वयं सेटिका है उसी तरह संयत जो आत्मा है सो परपदार्थ के त्याग से संयत नहीं है स्वयं ही संयत है-संयमी है।
जैसे सेटिका परवस्तु के सफेद करने से सेटिका नहीं है किन्तु सेटिका स्वयं सेटिका है वैसे ही परद्रव्य के श्रद्धान से दर्शन नहीं है किन्तु दर्शन स्वयं ही दर्शन है।
इस प्रकार से निश्चयनय का ज्ञान, दर्शन और चारित्र के विषय में वक्तव्य
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