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स्तवन, दादासाहब व गुरुजनों के स्तवन, परमकृपालु देव श्रीमद् राजचंद्रजी के प्रति गुंफित भक्तिपद, उनकी वाणी के पद्यानुवाद आत्मसिद्धि (हिन्दी), षट्पद रहस्य पद व फुटकर पद संग्रह देने के पश्चात् श्री जिन रत्नसूरि गहूँली आदि छूटी हुई कृतियाँ देकर अन्त में समजसार, ज्ञान-मीमांसा, परमात्म-प्रकाश-जिनकी अपूर्ण रचनाएँ जिस रूप में मेरे पास थी, दे दी गई हैं। अन्त में समाधिमाला व नियमसार-रहस्य दिया गया है । इन सब में नियमसाररहस्य एक उत्कृष्ट रचना है। इस प्रकार इस ग्रन्थ में गुरुदेव की समस्त उपलब्ध पद्यबद्ध रचनाएँ प्रकाश में आ गई हैं। पर कई कारणों से क्रम ठीक नहीं रह सका।
पूज्यगुरुदेव ने श्रीमद् देवचंद्रजी की कुछ अप्रकाशित कृतियों को बहुत वर्ष पूर्व गुजराती में प्रकाशित करवाया था। फिर श्रीमद् राजचंद्र जी के विशिष्ट वचनामृतों का संकलन 'तत्त्वविज्ञान' के नाम से एवं 'उपास्य पदे उपादेयता' भी लिख कर प्रकाशित करवाई। पूज्य श्री ने श्रीमद् आनंदघनजी महाराज कृत चौवीसी का महत्त्वपूर्ण भावार्थ लिखा व उनके पदों की अर्थ संकलना भी प्रारम्भ की थी। श्रीमद् देवचंद्रजी की सभी कृतियों को सुसम्पादित कर प्रकाशित-प्रचारित करने की प्रबल प्रेरणा की एवं उसे स्वयं देखकर संशोधित कर देने की कृपा पूर्वक स्वीकृति के साथ मंगवाया पर शारीरिक अस्वस्थता के कारण वह कार्य सम्पन्न न हो सका । हमारी 'ज्ञानसार ग्रन्थावली' का प्रकाशन भी आपकी ही प्रेरणा का सुफल है । दादा श्रीजिनदत्तसूरिजी कृत 'उपदेश कुलक'
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