Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 9
________________ उन्होंने देख कर कहा-"इस कन्या से विवाह करने से चौथे फेरे में कुमार की मृत्यु हो जावेगी" यह सुन कर राजा ने दुःखित होकर मन्त्री से सब वृत्तान्त कहा। वे बोले-सचिव ? अब यदि हम इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते तो हमारी मित्रता भंग होने की शंका है। प्रस्ताव स्वीकार करने पर पुत्र-मरण और कन्या वैधव्य की समस्या उपस्थित है। इस विषय में क्या करना चाहिये ? “मन्त्रो ने विचार कर उत्तर दिया-"महाराज ? यदि उचित प्रतीत हो तो कुमार रूप-राज से ही इस कन्या का विवाह कर दिया जावे"। राजा ने पुनः ज्योतिषियों से पूछा / उन्होंने उत्तर दिया-"राजन् ! रूप राज के साथ इसका विवाह योग्य बनता है"। * रूपराज के साथ निश्चित समय पर उस कन्या का विवाह होगया। रूपसेन के अविवाहित रहने पर भी रूपराज का विवाह लोगों को अयुक्त प्रतीत होने लगा। नगर में प्रसिद्ध हो गया कि रूपसेन में अवश्य ही कोई अवगुण है। रूपसेन को भी अपनी निन्दा का पता लग गया। वह मन ही मन दुःखी हो अपने मित्र से कहने लगा, मित्रवर ? पिता ने मेरे लिये अच्छा न जान कर ही उस कन्या का विवाह मेरे साथ नहीं किया। परन्तु लोग इस बात को न जान कर व्यर्थ ही निन्दा करते हैं। अत: मेरा विचार है कि मैं इन भूले हुये नगर वासियों को शिक्षा दूं। मित्र ने उत्तर दिया-"तुम्हारा यह विचार P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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