Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ (20 ) जब मालिन ने अपने आगे पांच सौ अशफियों का ढेर देखा तो अपने किये पर पछताने लगी और कुमार के आगे हाथ जोड़ कर बोली, महाराज मैं भूल गई / श्राप मेरे अपराध को क्षमा करें और श्राप अवश्य ही मेरे घर में रहिये / मैं . श्रीज से पीछे कभी आप का अपमान न करंगी" / इस पर कुमार ने सोचा, "यह सब धन का प्रभाव है"। कुमार रूपसेन चलने को तैयार हुए / परन्तु मालिन ने कुमार का सव सामान छीन कर अपने घर में डाल लिया और आप कुमार के पांओं पर गिर पड़ी और बोली- “कुमार ! आज से तू मेरा वन्धु है। इसके भगवान् साक्षी हैं"। कुमार फिर उसके घर में सुख से रहने लगा और एक दिन अपनी मूर्खता से उसने उन तीनों वस्तुयों का प्रभाव भी मालिन के आगे प्रकट कर दिया / . . . . . . . . . - एक दिन कुमार और मालिन अपनी छत पर बैठ कर कनकपुर की रचना देख रहे थे / कुमार ने अपने निकट हा सात मंज़िलों वाला एक महल देखा। रूपसेन ने मालिन से पूछा / मालिन ने कहा यह कनकपुर के राजा का महल है। इस नगर में कनक भ्रम नाम वाला राजाराज्यं करता है। उसकी पट रानी का नाम कनक माला, तथा पुत्री का नाम काकवती है। वह लड़की विद्या प्रादि 'गुणा से अंलंकृत साक्षात् सरस्वती की तरह है। सकल गुण युक्त तथा "64 कला में निपुण है / : . इसी महल में कनकरती रहती है। इस महल के लीनं सौ साठ 360 द्वार और चौरासी 4 खिड़किये हैं। कुमारी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57