________________ ( 31 ) . . जिस समय कुमार और कुमारी कनकवती. उस वृक्ष की एक शाखा पर विश्राम कर रहे थे. उसी समय वहां एक योगी और एक योगिनी विश्राम करने आये। विश्राम लेने को दोनों ही एक शाखा पर चढ़ गये। थोड़ी देर के बाद वह योगी अत्यन्त-वेग से रोने लगा। योगिनी के रोकने पर भी वह न रुका और बोला, प्रिये? जिस कारण से मैं रोता हूँ वह तू सुन / : हम चार योगियों ने इस वृक्ष पर रहकर चार सौ वर्षों में . एक देवता को प्रसन्न करके गुथली पादुके दण्ड और पात्र-यह , चार वस्तुएं प्राप्त की थीं। पक दम यहां एक धूर्त आया और चारों वस्तुएं हम से ठग कर चल दिया। वे वस्तुएं मेरे स्सरण आगई थीं जिस से मैं रोने लगा / प्रिये ! मैं तुझे भी बोधित करता हूँ कि संसार में कभी किसी का विश्वास नहीं करना / 'मेरा सर्वस्व. नष्ट हो गया बस मैं इसी लिये रोता हूँ। योगिनी ने योगी को तसल्ली दी और कहा:- . ___ "भवितव्यं भवत्येव कर्मणा मीहशी गतिः विपत्तौ किं विषादेन सम्पत्ती हर्षेण किम्" अर्थात्-संसार में जो होना होता है वह हो कर ही रहता है। इस लिये विपत्ति में रोने से और सम्पत्ति में हंसने से कुछ नहीं होता क्यों कि यह कर्मो की ही गति है / ___"उन वस्तुओं से किसी न किसी का तो उपकार होता P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust