________________ / 36 ). .. कुमारी ने इस बन्दर को देखते ही कहा-'मालिन ? यह बन्दर नो न मुझे दे दे। मैं इसस बेला कर गी"। मालिन ने देने से बहुत इनकार किया परन्तु उसने एक न मानो। कुमारी ने मानिन को एक दिनार और एक रेशमी साड़ी दे कर हर बन्दर ले लिया। मालिन भी बन्दर को छोड़ खुशी 2 अपने घर चली ग्राई / कुमारी रात भर उस बन्दर से खेलती रहो और रात्रि को भी उसे अपने साथ ही कमरे में ले गई। कुमार रूपो बन्दर ने भी अच्छा अवसर जान तुरन्त ही अरना मनुष्य रूप धारण किया / कुमारी ने जब कुमार रूपसेन को अपने सामने खड़ा देखा तो उस को बहुत आश्चर्य हुआ। वह सोचने लगी-"क्या में स्वप्न तो नहीं देख रही हूँ ? जक कुमारी को विश्वास होगया तो कुमारी लजा से शिर नीत्रा कर तुरन्त ही कुमार के पांचों पर गिर पड़ी, और कातर स्वर. में कहने लगी, "स्वामिन् ! श्राप मेरे अपराधों को क्षमा करो। मुझ में वड़ो भूल हुई। जो मैं पाप को जङ्गल में छोड़कर चली आई। फिर कभी ऐसी भूल न करंगी / प्राणनाथ ! मुझ किकरी को अवश्य ही एक वार तमा करें। कुमारी के कहने सुनने का कुमार के दिल पर कोई असर न हुअा। वह कनकवती से बोला-बहुत कहने सुनने से क्या होता है। वनावटी स्नेह से कमो सङ्कल्प सिद्धि नहीं होती। सच्चा प्रेम बहुत दुर्लभ है। कुमारी रूपसन के चरणों को पकड़ कर फिर बोलीनाथ ! आप जैसे सत्पुरुष अपराधियों पर भी कोध नहीं किया करते। मैंने अवश्य ही अपराध किया है, हे स्वामिन ! P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust