Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ दैवयोग से वहां राजा मन्मथ के पेट में थोड़ा सा दर्द उत्पन्न हुआ। राजा ने प्रभु श्री युगादि देवका ध्यान किया। उसके प्राण शान्त हो गये। राजा सिद्धक्षेत्र में प्राणत्यागने के कारण सौधर्म लोक को प्राप्त हुआ। कुमार रूपसेन ने अपने पिता की उत्तर क्रिया को, और फिर वह परिवार सहित अपने नगर को वापिस चला पाया। . . .. प्रधान मन्त्रियों ने अच्छे मुहूर्त में कुमार रूपसेन. का राज्याभिषेक कर दिया। अन्य राजाओं ने भी बहुत से हाथी घोड़े तथा वस्त्र भूषण उपहार में दिये। “राजा रूपसेन विर काल तक न्याय से प्रजा पालन करता रहा" : एकदा लीलावन में बहुत से जैन मुनि पधारे। राजा रूपसेन भी उनके दर्शन करने के लिये वहां गया। गुरुत्रों को नमस्कार करके धर्म देशना सुनो। फिर बोला-महाराज ! मेरी एक शंका को निवृत्त करें। वह शंका यह है। है" मैं (राजा रूपसेन) किस कर्म से बारह वर्ष वन में रहा ? तथा किस कर्म से 'मुझे चार दिव्य वस्तुएं प्राप्त हुई ? किस कर्म से मुझे परदेश में भी बहुत सा धन मिला और किस कर्म से मुझे अच्छी स्त्री प्राप्त हुई ? यह सब मुझ दास पर कृपा करके कहियेगा। / 15 मुनियों ने कहा-राजन् यदि तू अपना पूर्व वृत्तान्त सुनना चाहता है तो सुन / , वह इस तरह से है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57