Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

View full book text
Previous | Next

Page 50
________________ / 46 ) उसी समय ज्योतिषियों को बुला कर शुभ लग्न निकलवाया, और अपनी पुत्री कनकवती का रूपसेन से विवाह कर दिया। कुमार रूपसेन वहां थोड़े दिन रहा, फिर वह अपने मगर के प्रति चल दिया। कुछ दिनों चलने के बाद कुमार रूपसेन स्त्री सहित अपने नगर में पहुंचा। घर में जाकर कुमार रूपसेन ने अपने माता पिता के चरणों में नमस्कार किया। माता पिता ने उसे गले से लगा लिया // नगर भर में रूपसेन के आने की खबर हो गई। लोग राजा मन्मथ को वधाई देने के लिये श्राने लगे। राजा ने बड़ा उत्सव मनाया याचकों को बहुत धन दिया। कुमार रूपसेन पद्मावती देवी की सहायता से तथा जैनाचायों के कथनानुसार अपनी पत्नी सहित बारह वर्ष के बाद अपने नगर में आया था। . राजा जैनाचार्यों के दर्शन करने के लिये परिवार सहित बन में गये। गुरुओं ने राजा मम्मथ को यथोचित उपदेश देते हुये कहा, राजन् ! सुन: "दुलमं मानुष जन्म-दुलमं श्रावकं कुलम्....... 'दुलमा धर्मसामग्री दुलमा धर्म वासना" / अर्थात हे राजन् ! संसार में मनुष्य जन्म होना दुर्लभ है तिस पर भी धावक कुल में पैदा होना तथा धर्म की सामग्री तथा धर्म में बुद्धि रखना तो अत्यन्त ही दुर्लभ है। . P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57