Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 53
________________ ( 46 ) / रूपसेन का पूर्व वृत्तान्त / MAY लकपुर में तू 'सुन्दर' नाम वाला एक कुटम्वी था मारुता FINA तेरी पत्नी का नाम था। और तू खेती बाड़ी से अपना निर्वाह किया करता था / तुम्हारे बहुत से पुत्र पोते थे। एकदा तेरे खेत के निकट सहकार वृक्ष के नीचे कोई सिद्धजन पाकर बैठा। तूने उस सिद्धजन की एक मास तक सेवा की। इस पर सिद्धराज ने प्रसन्न होकर तुझे रूपपरिवर्तिनी विद्या दी। ___ उस विद्या के प्रभाव से तू सब कार्य करता रहा। तूने दीनो को बहुत दान दिया। इसके बाद एकदा-तेरे क्षेत्र के नज़दीक वाले वनमें बहुत से जैन मुनि आये। तू भी परिवार सहित उनके दर्शन करने गया, तथा उन मुनियों का उपदेश श्रवण करने के लिये उन के पास बैठ गया। मुनियों ने तुझे दया, दान धर्मादि का उपदेश देते हुए कहा-- "खेती करने तथा हल बाहने से बहुत पाप होते हैं" इस पर तूने कहा "गुरु महाराज ! मेरा बहुत सा परिवार है। सो में, खेतो के बिना उनका पालन पोषण कैसे करूं?" मुनियों ने कहा कि तू कोई एक नियम ग्रहण कर, जिससे तुझे धर्म का लाभ हो। इस पर तूने कहा-गुरुजी ! आज से मैं जिन मन्दिर में जिन दर्शन करके भोजन किया करंगा, तथा P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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