Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 54
________________ / 50 ) यथाशक्ति सुपात्रदान किया करंगा। ज्ञात-जीव-हिंसा तथा रात्री में भोजन नहीं करूंगा"। . ___ तव गुरूओं ने तुझे व नियम दिये और कहा-इन नियमों के पालने से तुझे इस लोक और परलोक में सुख होगा। ____ तूने इन नियमों को पूर्णतया सुना और पाप से डर कर. पालन भी किया। ___इस के वाद तू एक बार कहीं जारहा था। मार्ग में तुझे एक साधु मिला। तू ने उसे गुड़ घी में पके हुए पूड़े दिये / उस दान से तुझे हर्ष प्राप्त हुआ क्यों कि वह दान सुपात्र को दिया गया था। ___ एक बार तेरा ससुर तेरी पत्नी का लियाने के लिये तेरे घर श्राया, परन्तु तूने उसे जाने की आज्ञा न दी। इस पर वह बहुत रोने चिल्लाने लगी। तूने क्रोधित हो अपने ससुर को रूप परवर्तिनी विद्या से बछड़ा बना कर कीले से बांध दिया और श्राप क्षेत्र में चला गया। बारह घण्टे के बाद जब तू अपने घर श्राया तो तेरी पत्नी ने पूछा, मेरा पिता कहां है / तूने जवाब दिया--वह अपने घर चला गया है। पिता के गमन को सुन कर तेरी स्त्री रोकर कहने लगी, मुझे मेरे पिता के पास अवश्य भेजदें, यदि न भेजोगे तो में अन्न जल न करंगी। बार बार कहने पर तूने उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। उसके पिता को वैसा ही करके उसके साथ अपनी पत्नी को रवाना कर दिया। तू ने बहुत दान तथा परोपकार किये और साधुओं की सेवा की। काल करने के बाद, तू राजा मन्मथ के यहां पुत्र हुआ P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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