Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 55
________________ 80357 और तेरी स्त्री भी वहुत पुण्य उपार्जन करके कनक पुर के राजा के गृह में कनकवती हुई। तुम्हारा परस्पर प्रेम था, इस ही कारण वह अब भी है। जैसे तू ने अपने ससुर को बारह घण्टे बांध कर रक्खा था. उसके बदले तुझे बारह वर्ष तक पितृ-वियोग हुश्रा तथा चार नियम पालन करने से तुझे कन्था आदि चार वस्तुएं मिलीं। दान करने से तुझे हाथी घोड़े अर्थ सम्पत्ति तथा सुन्दर स्त्री मिली। का काम म तले भारत साबित करना या सण राजा रूपसेन गुरु के पास से श्राद्ध (गृहस्थ) धर्म को ग्रहण कर अपने घर आया और चारों नियमों का पालन करता रहा। एकदा राजा रूपसेन को विषम ज्वार चढ़ आया। बहुत से उपाय किये गये, परन्तु सव ब्यर्थ रहे। इसी समय दूर देश से एक वैद्य (देव) अपया और बोला-महाराज ! इस ज्वार को हटाने के लिये एक बली देनी पड़ेगी। परन्तु राजा ने उसकी बात को न जानते हुये कहा "मैं अपने नियम को प्राणों के लिये भंग नहीं कर सकता। राजा रूपसेन का नियम भङ्ग न होते देख वह देव प्रकट होकर बोला-हे राजन् ! तेरे नियम पालने की प्रशंसा इन्द्रसभा में हुई थी, मैं तेरी परीक्षा करने के लिये आया था, सो तुझे नियम में गढ़ देख कर में बहुत प्रसन्न हूँ। "इस पक्ष के अन्दर त हाथी के ऊपर से गिरेगा और तेरी मृत्यु हो जावेगी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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