Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 49
________________ 8. 45..): कर दिया है। . बतायो अब तुम्हारी क्या सलाह है! राजा उसी क्षण चिन्ता सागर में गोते खाता हुआ सोचने लगा-यह. योगी अज्ञात कुल है, हम इसका घर दर कुछ नहीं जानते फिर इसे क्यों कर अपनी लड़की दें? . . . ... राजा ने तुरन्त ही मन्त्री को बुला कर सम्मति ली / मन्त्री ने योगी से पूछा, हे योगि राज ! श्राप का स्थान कहां है तथा क्या जाति, ; क्या कुल, क्या धर्म और इस छोटी अवस्था में योग लेने का क्या कारण है ? : ... मन्त्री की बात सुन कर योगी ने कहा-आप का जाति धर्म पूछने से क्या प्रयोजन है। राजा ने पहिले कन्या दान की प्रतिज्ञा की है। मैं भी सिवाये उसके कुछ नहीं मांगता / : 4 - सच्चे आदमियों का बचन अन्यथा नहीं हुआ. करतो। मन्त्री ने फिर कहा, योगिराज ! आप तो सर्वोत्तम तथा परोपकारी हो। गुणों के जानने वाले गुणों की खान हो। हम आपके लक्षणों से हो आपके धर्म कुल जाति का अनुमान कर सकते हैं / यद्यपि हम आपके गुणों को अच्छी तरह जानते हैं। तो भी आप राजा के संशय को दूर करने के लिये अपना स्थान तथा कुल वताही द।........ योगियों का पहिनावा पहिने हुए कुमार रूप्रसेन ने मन्त्री की वातो से प्रसन्न होकर अपनी आद्योपांत कथा कह सुनाई और कहा कि मैं राजा मन्मथ का बड़ा पुत्र कुमार रूपसेन हूँ। .. कुमार के वृत्तान्त से सब ही बहुत प्रसन्न हुए। राजा ने P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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