Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ __राजा विवाह का नाम सुनते ही चिन्ता के सागर में डूब गया और कहने लगा कि इस तरफ खाई है तो उस तरफ शेर है। क्या करू, यदि हां करता हूँ तो योगी के साथ पुत्री का पाणिग्रहण होता है। संसार हास्य करेगा, जवाब देता हूँ तो पुत्री जैसी को तैसी रहती है। , राजा खिन्न चित्त होकर मन्त्री से पूछने लगा। मन्त्री ने उत्तर दिया--महागज! आप विवाह करने से इनकार न करो, जव कनकवती तथावत् हो जावेगी, तो देखा जावेगा। मन्त्री के समझाने से राजा ने योगी की बात को स्वीकार कर लिया। .. .. . .. . - राजा, मन्त्री, योगी, तोनों ही कुमारी कनकवती के महल की ओर चल दिये। मार्ग में योगी ने राजा और मन्त्री से फिर पूछा-देखो! यदि तुम्हारी इच्छा मेरा पाणिग्रहण कुमारी से करने की हो तो हम उसे वानरो को कुमारी बनावे, अन्यथा नहीं। . राजा और मन्त्री योगी के पीछे 'हां महाराज' 'हां महाराज' कहते जाते थे। एक जगह योगी ने रुक कर राजा और मन्त्री से कहा-“यदि कोई मेरे पढ़े मन्त्र को सुनेगा, वह तुरन्त ही पाषाण-शिला हो जावेगा। यह सुनते ही राजा तो तुरन्त अपनी सभा में लौट आया। परन्तु मन्त्री योगी के पीछे 2 ही चलता रहा। जब महल के द्वार पर ही जा पहुंचे तो योगी ने मन्त्री से फिर कहा-मन्त्रि ! तू मूर्ख प्रतीत होता है। यदि तू मेरे पठित मन्त्र को सुनेगा तो तुरन्त ही शिला रूप हो जावेगा। बता! फिर तू क्या करेगा ?" मन्त्री ने हठ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57