Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 48
________________ ( 44 ) पूर्वक कहा मेरा शरीर वज्र का है इस का क्या बिगड़ सकता है। योगी ने कहा-अरे मूढ़ ! क्यों मरने से नहीं डरता? मन्त्रों में अपूर्व शक्ति होती है। + + + . + योगी के कहने से मन्त्री को ज्ञान हुया तथा वह तुरन्त ही लौट आया। योगी (कुमार रूपसेन) अकेला ही कुमारी कनकवती के भवन में गया, वहां बैठी हुई सब दासियों को बाहिर निकाल दिया। जब कुमार ने देखा कि अब यहां तीसरा कोई नहीं तो उसने बानरी के आगे दूसरी जड़ा रखदी। वह तुरन्त ही कुमारी कनकवती बन गई। कुमारी ने तुरन्त ही अपनी सखियों को अपने निकट बुना लिया। सब दासिये कुमारी को जैसो की तैसी देख कर बहुत प्रसन्न हुई और कहने लगीं-हे सखि ! तू तो मर्कटो होगई थी, इस योगी ने .. तेरी जान बचाई है। दासिये तुरन्त ही राजा के पास हष संवाद सुनाने भागीं। इधर कुमारी हाथ जोड़ कर कुमार रूपसेन (योगी) के पाओं पड़ कर कहने लगी, खामिन् ! आज से पीछे मुझ दासी पर सदा ही कृपा दृष्टि रखना। कुमारी ने बहुत प्रार्थना की, परन्तु कुमार ने कुमारी की ओर एक बार भी न देखा। . . ---- इधर राजा दासियों की बात को सुन. दु:ख सुख दोनों के जाल में फंसा हुआ कुमारी के महल में आया। राजा को देखते ही योगी ने कहा-राजेन्द्र ! मैंने तेरी पुत्री को सजग P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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