Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 43
________________ ( 36 ) चोर को दिया जाता है वही तेरे लिये युक्त है। __ राजा के कठोर बचनों से मालिन का हृदय कांप उठा। वह सोचने लगी, कि मुझ पर श्राज भाग्य की करता है, जिस से मुझे यह दोष लग रहा है / ___राजा के क्रोध को बढ़ता देख मन्त्री बोला-महाराज ! श्राप क्यों पाप करते हो पहिले भी आपने एक परोपकारी विदेशी कुमार को मार दिया है। अब यह दूसरा स्त्री हत्या को पाप आप क्यों अपने ऊपर लेते हैं। ___ राजा ने चिन्ता प्रकट करते हुए कहा हे सचिव ! श्राप हो जाये तो चित में शान्ति हो। इस लिये जिस दुष्ट ने यह पातक किया है उसे श्राप दण्ड निकालिये। मन्त्री ने कहा राजेन्द्र ! मालिन कहती है कि वह बन्दर किसी योगी का छोड़ा हुआ था। इससे प्रतीत होता है कि ऐसे कुकर्म करने वाले योगी ही हैं। वे धूर्त ही देश विदेश में फिरते हैं। तथा मन्त्र, तन्त्र, से लोगों को कष्ट देते और छलते है। इन धूर्त योगियों का कभी विश्वास न करना चाहिये। राजा ने अपने सेवकों को बुलाकर आज्ञा दी; "जाओ देश विदेश में जहां भी कोई योगी मिले उसे पकड़ कर लाओ" ' हज़ारों योगी बन्दी गृह में पड़े हा हा कार और परस्पर मन्त्रणा करने लगे, कि राजा ने हमें व्यर्थ पकड़ा है, न जाने यह हमारा क्या करेगा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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