Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 44
________________ (40 ) एक दिन राजा स्वयं वहां गया और योगियों से पूछने लगा, “योगियो ! तुम सदा देश विदेश फिरते हो। किसी योगो ने मेरी पुत्रो को वानरी बना दिया है। क्या तुम उसे पुन: वानरो से कन्या बना सकते हो"। वे बोले महाराज ! हम तो नित्य ही भिक्षा माङ्ग कर खाते हैं, हमें तो विच्छू काटे तक का उपाय नहीं पाता, यह महान् कार्य तो हम से क्यों कर हो सकता है। राजा ने अपने सेवकों को बुलाया और पूछा क्या तुम सब योगियों को पकड़ लाये हो। उत्तर मिला-"महाराज एक यागो के सिवाये सब योगी आगये हैं' बह ऐसा घमण्डी योगो कहां है जो मेरे बुलाने पर भी नहीं आता। सेवकों ने कहा राजन् ! यह चौराहे पर ध्यान लगाये बैठा है। वह निर्धनों को स्वर्ण मुद्रा वांट रहा है। बहुत से अादमी उसके पास वैठे हैं। तथा यह योगी लोगों को (परोपकार करो) यह उपदश दे रहा है। ... .. . राजा कुपित हो वोला, जो मेरी अाज्ञा को नहीं मानता वह अवश्य ही मारने योग्य है। मन्त्री भी पास हो खड़ा था। वोला, महाराज! योगियों पर क्रोध करना उचित नहीं / श्राप राजा हो वह योगी है। यदि आज्ञा हो तो मैं उसे यहां लाने का प्रयत्न करू / राजा की आज्ञा से मन्त्री अपना थोड़ा सा परिवार लेकर योगी की सेवा में गया। योगी ने भी मन्त्री का यथोचित सम्मान किया। और बैठने को स्थान दिया। . मन्त्री ने हाथ जोड़कर निवेदन किया, महाराज ! श्राप P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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