Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 38
________________ . . ( 34 ) गया कि कुमारी अपने माता पिता के कोप के कारण अपने घर लौट गई है। किन्तु उसने मेरी बारी वस्तुएं क्यों उठाई ? उनक न होने से तो मुझे दुःख ही होगा। मैं कुछ और सोचता था परन्तु वह कुछ और ही कर गई। __ थोड़ी देर के बाद कुमार ने सोचा कि वह भी मुझे मालिन की तरह धूर्त जान छोड़ भागी है। कुमार ने बहुत पश्चात्ताप किया और कहा-मैंने व्यर्थ हो उसको अपना भेद दिया और उसका विश्वास करके अपनी चारों वस्तुएं उसे दिखाई पो कि स्त्रियों का कभी विश्वास न करना चाहिये / नितान्त कुमार वहां से दोनों जड़िये लेकर तक्षा स्वयं एक जड़ी संघ बन्दर बनकर कुछ दिनों के बाद कामयुर के निकटवर्ती उसी बाग में आकर ठहरा। थोड़ी देर के बाद उसने दूसरी जड़ी संघी और आदमी बन चम्पा के वृक्ष के नीचे सो गया।' नित्य की तरह मालिन अाज भी पुष्प लेने वाटिका में पाई / चम्पा के वृक्ष के नीचे सोये हुए कुमार को देख कर हपित हो बोली "भ्रात ! तू इतने दिन से कहां था, अथवा किली लोभ के वश या किसी को मिलने गया था"। कुमार निद्रा से जागा और उसने अपना सब वृत्तान्त उसे कह सुनाया। मालिन ने विस्मित हो कुमार से पूछा, कि मैं नित्य ही फूल लेकर कुमारी के पास जाती हूँ, वह कहीं नहीं गई। कुमार ने उत्तर में कहा, यह सव वृतान्त उसी रात्री का है-जब मैं तुम्हारे घर सोने नहीं आया था। मैं तो जङ्गल में सो गया था, परन्तु वह भाग आई। उसने मेरा सर्वस्व हर लिया तथर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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