Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 37
________________ ( 33 ) अवटित बड़ दिया जो मेरा इस नोच के साथ सम्बन्ध कर दिया। इस लिये यही अच्छा हो जो मैं फिर अपने घर को वापिस चलो जाऊं। कुमारी यह विचार कर कुमार रूपसेन की कथा श्रादि चारों वस्तुओं को उठा, पादुका प्रयोग से शीघ्रही अपने घर श्राकर अपने कमरे में सो रही। किसी ने भी उसे आते जाते नहीं देखा ! ___ हत भाग्या कुमारी कनकवती चिन्ता मणि रत्न को छोड़ तथा दृढ़ प्रेम को न जान, मूर्खता में फंस कर कुमार का साथ छोड़ चली गई। - उधर कुमार रूपसेन नींद से जागा। उसने कई बार कुमारी को प्रिये ! प्रिये ! कह कर सम्बोधित किया परन्तु वहां से कुछ उत्तर नहीं मिला। अन्धकार के कारण कुमार ने सोचा कि सोती होगी इस लिये कोई उत्तर नहीं मिला। पुनः वह कनकवती को जगाने का प्रयत्न करने लगा। परन्तु यह उपाय भी निष्फल हुवा / जब कुमार ने इधर उधर देखा तो न वहां कुमारी को विद्यमान पाया और नाही अपनी चारों वस्तुओं को। ___ कुमार विस्मित हो विचारने लगा-"निद्रा ही अनथों की जड़ .. है, निद्रा से ही प्रमाद होता है। श्रेय को निद्रा नष्ट करती है तथा निद्रा ही संसार को बढ़ाती है"। रूपसेन ने कुमारी को वारवार खोज की परन्तु कहीं भी कोई पता न चला। नितान्त उसके मन में यह विश्वास हो P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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