Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 33
________________ पत्नी दोनों हो साधु हो! तुमने प्रत्युपकार कर के पृथ्वी को अलंकन कर दिया है। मालो ने उत्तर दिया--फुमार ? यह * सब तेरे ही पुण्य का फल है। ऐसी बातें करते 2 उन्हों ने उस रात्री को व्यतीत कर दिया। .. प्रातः काल ही कुमार रूपसेन ने मालिन से कहा-यहिन ? . श्राज तू पुष्प लेकर कुमारी के पास शीघ्र जा और कुमारी के हर्षशोक की परीक्षा कर। यदि वह मेरे विरह में लवलीन हो तब तूने मेरे जीवित रहने की वात से उसे हर्षित कर कहना कि श्राज सन्ध्या को कुमार रूपसन तेरे महल में अवश्य श्रावेगा। यदि इस तरह कहने पर भी उसका शोक दूर न हो तो पूरा श्रश्वासन देना। यदि उलने कोई शोकावस्था प्रकट न को तो श्राज सं पीछे मैं कभी उसके घर नहीं जाऊंगा। - कुमार के कहने से मालिन फूल लेकर तुरन्त हो कुमारी कनकवती के महल में गई। कुमारी ने मालिन को देख कर दीर्घनिःश्वास लिया और बोली, “यह हार श्रव मेरे श्रृंगार के योग्य नहीं रहा। कमो कि जिसके लिये मैं सब श्रंगार किया करती थी, वह ही नहीं रहा। आज मैं अत्यन्त दुखी हूँ ! अपना दुःख किस मागे प्रकट करू। केवल तेरा ही सहारा जान तेरे आगे निवेदन करती हूँ। बता अब मैं इस समय किस को शरण ल / बस श्राज से मैं इस संसार में जीवित न रहँगी और रहना भी किसके लिये है ? कुमारी कनकवती के विलाप को सुन कर मालिन बोली: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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