Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 31
________________ ( 26 ) पत्नी दोनों ही साधु हो! तुमने प्रत्युपकार कर के पृथ्वी को अलंकत कर दिया है। मालो ने उत्तर दिया--कुमार ? यह * सब तेरे ही पुण्य का फल है। ऐसी बातें करते 2 उन्हों ने उस रात्री को व्यतीत कर दिया। प्रातः काल ही कुमार रूपसेन ने मालिन से कहा-वहिन ? श्राज तू पुष्प लेकर कुमारी के पास शीघ्र जा और कुमारी के हर्षशोक की परीक्षा कर / यदि वह मेरे विरह में लवलीन हो तब तूने मेरे जीवित रहने की बात से उसे हर्षित कर कहना कि श्राज सन्ध्या को कुमार रूपसन तेरे महल में अवश्य थावेगा। यदि इस तरह कहने पर भी उसका शोक दूर न हो तरे पूरा श्रश्वासन देना। यदि उसने कोई शोकावस्था प्रकट न को तो आज से पीछे मैं कभी उसके घर नहीं आऊंगा। - कुमार के कहने से मालिन फूल लेकर सुरन्त हो कुमारी कनकवती के महल में गई। कुमारी ने मालिन को देख कर दीर्घनिःश्वास लिया और बोली, "यह हार अब मेरे श्रृंगार के योग्य नहीं रहा। क्यों कि. जिसके लिये मैं सब श्रृंगार किया करती थी, वह ही नहीं रहा। आज मैं अत्यन्त दुखी हूँ ! अपना दुःख किस के मागे प्रकट करूं। केवल तेरा ही सहारा जान तेरे बाग निवेदन करती हूँ। बता अव मैं इस समय किस को शरण लं / बस श्राज से मैं इस संसार में जीवित न रहँगी और रहना भी किसके लिये है ? कुमारी कनकवती के विलाप को सुन कर मालिन बोली: P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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