Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 30
________________ वह मर गया है परन्तु उसका दण्ड हमारे घर में विद्यमान है, श्राप उस दण्ड को लेकर वहां जाओ और तीन बार उस मृतक शरीर पर दण्ड लगायो; वह कुमार अवश्य ही जीवित हो जावेगा। इस में कोई सन्देह नहीं, केवल साहस की श्रावश्यकता है, आप इतना प्रत्युपकार करें। माली ने इस बड़े भाषण को सुनकर उत्तर दिया, “प्रिये ! . तुम सत्य कहतो हो, परन्तु वहां जाना बड़ी विपत्ति का कारण है। यदि मैं वहां जाऊं और मुझ को कोई देखले तो मुझ पर विपत्ति अवश्य ही टूट पड़े। पति का टका सा जवाब सुन कर मालिन स्वयं वहां गई। उसने वहां जाकर देखा कि रूपसेन के गले में फांसी पड़ी है तथा कुमार रूपसेन बुलाने पर भी नहीं बोलता / मालिन ने तुरन्त ही मृतक शरीर पर तीन वार दण्ड लगाया। दराड का लगना था कि कुमार तत्क्षण "जय जिनेन्द्रदेव" कह कर उठ खड़ा हश्रा, और कहने लगा कि आज तो बहुत निन्द्रा आई। मालिन ने कुमार को सव वात कह सुनाई। कुमार ने भी स्मरणकर मालिन के गुणों का गान किया। यह वोला-"बदिन ? मैं तेरा यह उपकार कभी न भूलूंगा, तूने अाज मुझे जीवन दान दिया है"। मालिन कुमार को लेकर अपने घर चली गई। ..... माली ने जीवित कुमार को देखकर अत्यन्त हर्ष प्रकट किया। कुमार से कहने लगा। “कुमार ? तेरे भाग्य अच्छे ही थे जो दुःख से छूट गया। कुमार ने कहा यह सब तुम्हारी 'ही कृपा का फल है। तुम्हारे ही प्रत्युपकार से मेरी जान बची है तथा तुम्हें धन्य हो कि जिन्हों ने मेरी जान बचाई। तुम पति P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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