________________ और रात्रि में सु-सजित हो कर पादुकाओं को पहन कर घड तुरन्त ही कुमारी कनक वती के मन्दिर में पहुंचा। कुमार को अपनेघर श्राश देख कुमारी के हर्ष का पारावार न रहा, वह कुमार का शिष्टाचार करने के लिये उठी। कुमार के दर्शन मात्र से कुमारी का मन प्रफुल्लित हो गया। उसने कुमार की कुशलता पूल उन्हें अच्छे स्थान पर बिठाया और कहने लगी-"स्वामिन् ! श्राप यहां तक कैसे प्राये? मेरे पिता ने मेरी रक्षा के लिये महल के चारों ओर 7 सात सौ पहरे दार छोड़ रखे हैं सो द्वार-मार्ग से श्राना तो कठिन ही है" / कुमार बोला-"मैं विद्या वल से चाहूँ जहां जासकता हूँ"। (यदि यह मेरा स्वामी हो जावे तो अहो भाग्य !) ऐसा विचार कर कुमारी रूपसेन से कहने लगी:- . .. .. . ... ....... ____ "हे सस्पुरुष क्या श्राप मेरे साथ विवाह करके मुझे कृतार्थ करेंगे"! कुमार बोला, मैं विदेशी ई, तू राज कन्या है, मेरा तेरा सम्बन्ध कैसे हो सकता है? * पतः "ययोर सम वित्तं ययोरेव समं कुलम् / . तयोमैत्री विवाहश्च नतुपुष्ट विपुष्टयो" अर्यात्-मैत्री और विवाह उनका ही परस्पर हो सकता है जो दोनों ही धन तथा कुल में बराबर हों।... . : छोटो के साय बड़ों का निभाव होना कठिन ही है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust