________________ ठीक नहीं, तुम लोगों के मुंह को बन्द थोड़े ही कर सकते हो। नीच पुरुष दूसरों के दोषों का कथन किया ही करते हैं / इस पर आप को खेद न करना चाहिये। लोगों के निन्दा करने से आप का महत्व कम नहीं होता" / मित्र से विदा ले रूपसेन सोचने लगा, कि लोग मुझ पर हंसते हैं, मेरे दोषों को ही प्रकट करते हैं। मुझे अब यहां रहना योग्य नहीं। अपने मान की रक्षा के लिये मुझे विदेश चले जाना चाहिये, वहाँ मुझे मेरे पुण्यों के प्रताप से अवश्य सुख मिलेगा। यह निश्चय करके रात्रि में ही वह अपने नगर से चल खड़ा हुआ। कुमार रूपसेन जब नगर के बड़े फाटक पर पहुंचा, तो द्वार पाल ने उसे रोका और कहा-अर्ध रात्रि में श्राप के बाहर जाने का क्या कारण है। मैं श्राप को राजा की आज्ञा विना .. बाहर न जाने दूंगा। - कुमार ने द्वारपाल के हाथ पर एक स्वर्ण मुद्रा रक्खी और द्वार से बाहर हुश्रा। ___द्वार पार करते ही कुमार ने अपने घोड़े को पवन सदृश् दौड़ाया और तुरन्त ही एक घने जङ्गल में पहुंच गया। वहां उसने एक जैन मन्दिर देखा। उसकी परिक्रमा करके अन्दर प्रवेश किया। अन्दर जाकर उसने एक सर्व विघ्न हरने वाली तथा सर्व सुख देने वाली श्री पार्श्वनाथ भगवान की मूर्ती देखी। प्रसन्न मन से प्रणाम करके चैत्य वन्दन किया। एवं अनेक प्रकार से श्री पार्श्वनाथ भगवान् की स्तुति करके P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust