Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 11
________________ वह वहां से भागे चला / वहुत आगे जाकर उसने घोड़े को थका जान वहीं जङ्गल में छोड़ दिया, और श्राप तुङ्ग पर्वत के निकटवर्ती सहकार वन में विश्राम करने लगा। इधर राजा मन्मथ को पता लगा कि रूपलेन नगर में नहीं है। उसने दुःखित होकर उसे ढूंडने के लिये अपने सेवक भेजे, परन्तु कहीं भी उसकी सुध न मिली। नितांत सब संवकों ने राजा के आगे निवेदन कर दिया। राजा ने दुःखित होकर ज्यातषियों को बुलाया। ज्योतषियों ने अगले दिन उत्तर देने को कहा। अगले दिन अाकर कहा कि "महाराज हम रूपसेन के बारे में कुछ नहीं कह सकते और नाहीं श्राप पूछे। सुन कर श्राप को कष्ट होगा"। यह सुनते ही राजा मूलित हो गये, तथा थोड़ी देर के बाद सावधान होकर राजा ने जैनाचार्य को पूछा। जैना चार्य ने उत्तर दिया, "राजन्" मैंने पद्मावती देवी से पूछा। उसने उत्तर दिया है, कि कुमार रूपसेन परदेश गया हुआ है। वह बारह वर्ष के बाद धन सम्पत्ति स्त्री सहित अवश्य श्रावेगा इस में कुछ संशय नहीं। देवताओं का कहा हुआ अन्यथा नहीं हो सकता। यह सुनते ही राजा को बहुत दुःख हुया, वह कुटुम्ब सहित नित्यही दुःखी रहने लगा। रूप सेन को वह क्षण भर भी नहीं भुला सकता था। .. . उधर रूपसेन थोड़ी देर विश्राम करके फिर भागे चल दिया। थोड़ी दूर जाकर उसकी दृष्टि एक वृद्ध पुरुष पर पड़ी, वह ग्राम ग्राम में भिक्षा के निमित फिरता था। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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