Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ ( 13 ) कुमार के तरकश में पांच वाण थे, उसने तुरन्त ही तरकरा से एक वाण लिया और योगियों के सामने तोड़ डाला। जब कुमार ने बाण को तोड़ कर पृथ्वी पर डाल दिया, तब योगियों ने कुमार से पूछा कि तुमने बाण क्यों तोड़ दिया। कुमार ने उत्तर दिया, मैंने सुना था कि तुम पांच हो, इस लिये तुमारे वध के लिये मैंने पांत्र बाण रक्खे थे। अब तुम मेरे सामने चार पाये हो। इस लिये मैंने पांचवां वोण व्यर्थ समझ कर तोड़ डाला है। इस वन में मैं तुम्हारी बहुत दिनों से खोज करता रहा। परन्तु अकस्मात् तुम श्राज स्वयं ही प्राप्त हो गये हो। ____ योगियों ने सोचा कि कुमार अवश्य ही कोई महान शक्ति है। इसे किसी तरह छल कपट से वश में कर जाल में फंसाना चाहिये। वे बोले :__ हे सत्पुरुष ? हम तो तुझे सुजन जान तेरे पास आये है और तू हमें बुरा समझता है। हम योगी हैं तथा संसार का त्याग कर निर्जन वन में रहते हैं। ऐसे कह सुन कर वे योगी रूपसेन कुमार को उस वट वृक्ष पर ले गये, और कुमार से वैराग्य भरी बातें करने लगे। कुमार ने उन से पूछा ? कि तुम्हें व्रत धारण किये कितने वर्ष हो चुके हैं। वे बोले हमें बत ग्रहण किये पांच सौ वर्ष हो चुके हैं। कुमार ने कहा, तव तो तुम्हारे दर्शनों से मेरा भी जन्म सफल हो गया है। ऐसे वचनों से कुमार भी उन्हें सन्तुष्ट करता रहा। इस पर उन्हों ने उस का विश्वास दिलाते हुये कहा, हे कुमार ? तू अाज से हमारा धर्म भाई रहा हम तुझ से कोई छल न P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57