Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 14
________________ . ( 12 ) . . अर्थात- नमस्कार मन्त्र के बराबर कोई मंत्र नहीं शत्रंजय के सदृश कोई तीर्थ पर्वत नहीं तथा वीतराग भगवान् - के समान कोई देवता न हुआ है और न होगा। : कुमार को मार्ग में अच्छे 2 शकुन हुए। चलते 2 कुमार बहुत दूर निकल गया और जव मध्यान्ह का समय हुया, तो उस को तृषा ने व्याकुल कर दिया। . कुमार एक स्थानपर वैठ कर सोचने लगा कि विदेश में बहुत कष्ट है, मैंने अभी चार सौ कोस जाना है। परन्तु तृपा अभी से व्याकुल करने लगी है। नितान्त कुमार थक कर नीम के वृक्ष के नीचे बैठ गया। वृक्ष की छाया से कुमार का हृदय कुछ शान्त हुयां और उसने सोचा कि यहां बैठे रहने से मार्ग कम थोड़े ही होता है। इस लिये उठा और श्रागे को चल दिया। कुछ दूर जाने पर वह एक नदी के किनारे पहुंचा और उसने वस्त्र द्वारा छान कर जल पिया / नदी को पार करके कुपार थोड़ी दूर जाने पर उस वट वृक्ष के पास पहुंचा, और सावधान हो पंचपरमेष्टि मन्त्र का जाप करते हुए आगे बढ़ने लगा। उन चारों योगियों ने वृक्ष पर बैठे 2 दूर से कुमार को श्राते देख आपस में मन्त्रणा की। "यह जो 'पाने वाला व्यक्ति है अवश्य कोई महापुरुष प्रतीत होता है। अतः इस अवश्यहो अपने वश में करना चाहिये। वे चारों योगो कुमार की ओर चल दिये। जब कुमार ने इन योगियों ' को अपनी ओर आते देखा। उस ने तुरन्त ही जान लिया कि येह वे हो योगी होंगे। इतने पर भी वह तनक नहीं घबराया और सोचने लगा, कि यहां पर कोई चाल चलनी चाहिये। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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