Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 13
________________ ( 11 ) अपने हैं। इस लिये हे द्विजवर ! श्राप मुझे कनकपुर जाने का मार्ग बतायें।" कनकपुर जामे की वात सुन कर ब्राह्मण ने चौक कर. कहा “सुकुमार रूपसेन ! तुम कनकपुर जाने का नाम न लो! कनकपूर का रास्ता अत्यन्त भयंकर है"। कुमार ने कहा-क्यों? भय किस बात का है। वृद्ध ने कहा-मार्ग में एक बहुत पुराना वट का वृक्ष है, जिस का चार शाखायें चारों तरफ दूर 2 तक फैली हुई हैं। तथा उन चारों शाखाओं पर विद्या-सिद्ध . . चार योगी रहते हैं। वे लोगों पर उपद्रव करते हैं। तुम्हें उन के सामने न जाना चाहिये। इस लिये मैं कहता हूँ कि तुम बच्चे हो, कनक-पुर मत जायो। कुमार ने हंस कर कहा मैं वहां जाने में कोई भय नहीं मानता। क्योंकि मैं तो केवल पुण्य ही की शरण में हूँ। कर्म फल में ही मेरा दृढ़ . विश्वास है। विप्र ने कुमार को जव किसी तरह भी रोके रुकता न देखा, तो कहा-सावधान होकर जाना "शिवास्ते पन्थान : सन्तु :" कुमार ने ब्राह्मण को एक स्वर्ण मुद्रा दी और कहा, कि श्राप हमारे घर जाकर मेरा पता न देना। और आप गर्जता हुआ आगे बढ़ा। कनक-पुर जाने के लिये यद्यपि मार्ग कठिन था, तो भी कुमार अपने अभीष्ट देवता का स्सरण करता हुआ आगे जारहा था और कहता था: "नमस्कार समो मन्त्रः शत्रुञ्जयः समो गिरिः / वीतराग समो देवो न भूतो न भविष्यति” / P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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