Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 8
________________ युक्तमेम "संतोष त्रिषु कत्तव्यः स्वदारे भोजने धनेत्रिषु चैव न कर्तव्यो दानेचाऽध्ययने त” / अर्थात्-मनुष्य को स्त्री में, भोजन में, और धन में संत्तोष करना चाहिये परन्तु दान-अभ्ययन और तप इन तीनो म संत्तोष न करना चाहिये। ___ कम से वे दोनों राज कुमार जवान होकर. विनय, विवेक और चातुर्य आदि गुणों से युक्त सव जगह प्रसिद्ध हो गये। राजां भी उन्हें यौवन सम्पन्न देख कर उनके लिये अच्छे कुल की कन्यायें तलाश करने लगा।। इधर मालव देश को धारा नगरी में प्रतापसिंह राजा राज्य करता था,। उसके बहुत से पुत्रों के पीछे सर्व कला कुशला एक पुत्री हुई, उस कन्या को विवाह योग्य होते देख राजा उसके विवाह की चिन्ता करने लगा। - एक वार राजा प्रतापसिंह के पूछने पर उसके मन्त्री ने कहा, "महाराज? राजा मन्मथ के दो पुत्र सर्व-गुण सम्पन्न सनने में आये हैं इसलिये आप अपनी पुत्री का सम्बन्ध उनमें से एक से करदें तो अच्छी बात है। राजा प्रतापसिंह तुरन्त ही इस नेक सलाह को मान गया; और मन्त्री को भेज कर उसने राजा मन्मथ से यह प्रस्ताव किया। राजा मन्मथ को यह प्रस्ताव रुचिकर प्रतीत हुया / उसने ज्योतषियों को बुला कर विवाह के सम्बन्ध में पूछा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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