Book Title: Rupsen Charitra
Author(s): Jinsuri
Publisher: Atmanand Jain Tract Society

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Page 7
________________ स-कुशल श्राये हुये राजा को देख कर प्रजा बहुत प्रसन्न हुई तथा राजा ने उस देवता का और अपने जैन धर्म अंगी कार करने का सव हाल कह सुनाया। लोग बहुत प्रसन्न हुये और सब के सव जैन धर्म में स्थिर होगये। पति भक्ता पट रानी ने भी वैसा ही किया। देव पूजा तथा पंच परमेष्ठि का ध्यान करते हुये राजा के दो पुत्र पैदा हुए। राजा ने सोने के उस प्याले में उन्हें पानी पिलाया। फिर बड़े उत्सव किये, बहुत से वस्त्र भूषण दान दिये और रूपसेन तथा रूपराज उनके नाम रक्खे / शुक्ल पक्ष के चन्द्रमा की तरह वे ज्यों 2 बढ़ते गये. त्यो 2 प्रजा उन्हें अधिक से अधिक प्रेम से देखने लगी. “स एव रम्यः पुत्रो य: कुलमेव न केवलम्पितुः कीर्ति च धर्म च गुणांश्चापि विवर्धयेत्" अर्थात्-संसार में वही पुत्र श्रेष्ठ होता है. जो केवल अपने कुल को ही नहीं. अपने पिता की कीति और धर्म तथा गुणों की भी वृद्धि करता है। राजा ने उन्हें विद्या अध्ययन के लिये पण्डित के पास छोड़ा-क्यों कि जिस मनुष्य ने बचपन में विद्या अध्ययन नहीं किया, जवानी में धन नहीं कमाया, और बुढ़ापे में धर्म नहीं किया. वह आयु के चौथे भाग में क्या करेगा। यद्यपि वे दोनों राज कुमार पूर्ण विद्वान हो गये, तथापि उन्हों ने विद्याभ्यास न छोड़ा। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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