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रघुवरजसप्रकास धुर सम पछ लघु गुरु लघू फिर धारजै। संख्या थळ विपरीत उभय संभारजै ॥ ६०
वारता
स्थांन विपरीतके सरव लघु कर अंत लघुका पाद । लघु नीचे गुरु लखजै । प्रागै उरध पंगत सम पंगत करणी पाछै ऊबरे सौ सरब ही लघु करणा । इति अरथ।
मात्रा संख्या प्रकारांतरे आदरा गुरु सिर लघु धरजै। आगे पंगत नीचली पंगत समांन अर पाछै ऊबरे सौ दोय ऊबरे तौ गुरु करणौ नै तीन ऊबरे तौ गुरु करे नै लघु करणौ।
प्ररथ
प्रकारांतरे स्थान विपरीतके सरव गुरु कर अंतका गुरुके सिर लघु धरणौ । आगे नीचली पंगत समांन पंगत करणी । पाछै एक ऊबरे तौ लघु करणौ, दोय ऊबरे तो गुरु करणा, गुरु कर लघु करणौ । इति अरथ । इति अष्ट प्रकार मात्रा प्रस्तार संपूरण । अथ मात्रा अस्ट प्रकार नस्ट उदिस्ट कथन ।
वारता मात्रा सुधको अरु मात्रा सुद्धका प्रकारांतरको तौ निस्ट उदिस्ट आगे सनातनी कहै छै जेहीज जांणणा । हर छः प्रकारका फेर कहां छां ।
अथ मात्रा स्थान विपरीत उदिस्ट विधि ।
थळ विपरीत उदिस्ट सिर, उलटा दीजै अंक। गुरु सिर अंकां उरध अध, लघु सिर एकही अंक ॥ ६१ गुरु सिर वाळा अंक गिणि, पूरण अंकसू टाळ । बाकी रहैस भेद कवि, वेडर कहे वताळ ॥ ६२
६०. धुर-प्रथम । पछ–पश्चात् । थळ-स्थान । संभारजै-सम्हालना। लख-लिखिए ।
सनातनी-पूर्वाचार्य । हर-प्रत्येक । ६२. वेडर-निर्भय । वताळ-वतला कर ।
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