Book Title: Raghuvarjasa Prakasa
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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३३० ]
रघुवरजसप्रकास बेख दास प्रहळाद बारह, बिप नरहर धार उबारियां । सत्य बळ दे सोह जग सखै, हरि तन सझ मंगणहारियां ॥ गोह अहल्या सवरी गीध, बळ व्याध कमंध बिचारियां । भी सुग्रीव भभीखणांह, ब्रजराज सतोल बधारियां ॥ निबळ अनाथ निधार नेक हरि, सबळां कीन्ह निहारीयां । सीताबर संत सधारियां, सीताबर संत सधारीयां ॥ १३
अथ मात्रा उपछंद निसांणी हंसगत तथा रूपमाळा लछण
मुण तुक प्रत बत्तीस मत, अंत भगण गण आंण । गण निसांणी हंसगत, वरणत राम बखांण ॥ १४
प्ररथ तुक अंक प्रत बतीस मात्रा होय । तुकके अंत भगण गण होय, सौ निसांणी हंसगत कहीजै तथा बेअखरी छंदरी दोय तुकांसू अक तुक वणे सौ हंसगत निसांणी। हंसगत निसांणीरै नै बेअखरी छंदरै अतरौ तफावत छ सौ कहां छां। बेअखरी छंदरै तौ तुकरै अंत गुरु लघुरौ नीयम नहीं छै । कठैक तुकंत गुरु, कठैक तुकंत लघु होय नै हंसगतरै तुकंत भगणहीज आवै सौ लघु तुकंतरौ नेम छै । यतरौ भेद छ । यणनै कोई रूपमाळा पिण कहै छ।
अथ हंसगत निसांणी उदाहरण
निसांगी स्रीरघुनाथ अनाथ नाथ सुज, बेढ सत्र दसमाथ विहंडण ।
जाहर मही जहूर सुजस जिण, महपत नूर सूरकुळ मंडण । १३. बेख-देख कर। बिप (वपु)-शरीर। नरहर-नृसिंहावतार । उवारियां-रक्षा की।
तन-शरीर। सझ-धारण कर । गोह-गुहनामभक्त, निषादराज जो रामका परम भक्त
था। बळ-राजा बळि । सधारीयां-रक्षा की, रक्षा करने पर । १४. मुण-कह। तुक प्रत-प्रति चरण । मत-मात्रा । बखांण-यश । अतरौ-इतना ।
तफावत-भेद, फर्क। कठेक-कहीं पर । नेम-नियम । यतरौ-इतना । यणनै-इसको।
पिण-भी। १५. बेढ-युद्ध। सत्र-शत्रु । दसमाथ-रावण । विहंडण-संहार करने को। जाहर
जाहिर, प्रसिद्ध । मही-पृथ्वी। जहूर-प्रकाशन । सुजस-सुयश । महपत-राजा । नूर-कांति, दीप्ति। सूरकुळ-सूर्य वंश । मंडण-आभूषण ।
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