Book Title: Raghuvarjasa Prakasa
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

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Page 363
________________ ३३८ ] रघुवरजसप्रकास पै'लौ विसरांम तौ मात्रा तेरै ऊपर होय । दूजौ विसरांम मात्रा सोळं ऊपर होय, सौ निसांणी मछटथळ नांमा कहीजै। इणरौ दूजौ नाम सोहणी पिण छ । अथ मछटथळ तथा सोहणी निसांणी उदाहरण निसांगी तज मक्कर फक्कर तसं, उर सुध करखे रात अपंदे । वस करदे इंद्री अवस, तन मझी तप सील तप्पंदे ॥ आप रहंदे अघ अळग, पर छिद्र निसदीह ढपंदे । सेव सझदे सांइयां, पै करमूं कबहू न लपंदे ॥ आदम लखू दरमियांन, छित विरल नर नांहि छिपदे । सत ग्रह रदे तजदे असत, धर कदमं सुभ पंथ धपदे । नाम जिन्हूदा अमर नित, खित जाये जे जीव खपंदे । जिन्हां जीतब जीतिया, जे रघुबर नित जीह जपंदे ॥ ३१ ___ अथ मात्रा असम चरण कड़खा छंद लछण धुर तुक मत चाळीस धर, तुक अन मत सैंतीस । अंत गुरु तुक प्रत अखिर, कड़खौ छंद कहीस ॥ ३२ प्ररथ पै'ली तुकरी मात्रा चाळीस होय । पछली तीन ही तुकां तथा सवाय करै तौ पिण तुक प्रत मात्रा सैंतीस होय । तुकंत गुरु अखिर तथा करणगण होय । जीं ३१. मक्कर-गर्व, अभिमान । फक्कर (फक्र)-दीनता, गरीबी, आवश्यकतासे अधिक किसी पदार्थकी कामना न करना। मझी-मध्य। तप-तपस्या। तप्पंदे-तपस्या कर। अघपाप । अळग-दूर । पर-दूसरोंके। छिद्रं-छिद्र । निसदीह-रात दिन । ढपंदे-ढकते हैं। सेव-सेवा। सांइयां-ईश्वर। प्रादम-ईश्वर। लखू-देख, देखता हूँ। दरमियांन-मध्य । छित-पृथ्वी। विरले-कोई। छिपंदे-छिपते हैं। रदे-हृदय । असत-असत्य । जिन्हूंदा-जिनका। खित-पृथ्वी। जाये-जन्मे । जे-जो, वे । खपंदे नाश होते हैं । जिन्हां-जिन्होंने । जीतब-जीवन । जीह-जीभ । जपंदे-जपते हैं । ३२. अन-अन्य । मत-मात्रा। कहीस-कहूँगा। पछली-बादकी, पश्चातकी। सवाय विशेष । करणगण-दो दीर्घ मात्रा का नाम ऽ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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