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रघुवरजसप्रकास
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अथ मात्रा वत्ति वरणण
दूहा
मत्त व्रत्तमें सुकव मुण, मात्र प्रमाण मुकाम । आवै समता आखिरां, वरण व्रत्त जिण ठांम ।।१ मत्त व्रत हिक अह मुणी, पढ़ि सौ च्यार प्रकार । मत्त छंद उप छंद पद, असम सुदंडक धार ॥ २
छंद चंद्रायणौ * लग मत्ता चौवीस छंद मत्त लेखजै। सुज यां अधिका मत उपछंद विसेखजै॥ वरण मत सम नहीं असम पद जांणाजै। बे छंदां मिळ दंडक मत्त बखांणजै ॥ ३
___अथ मात्रा छंद तंत्र गमक छंद पंच मत, गमक सत। सीत बर, राम रर ॥४
___ छंद बाम छ मात्रा छ मत 'बांम' समरि स्यांम। झठ धंध, मन म बंध ॥५
१. मुकाम-स्थान । आखिरां-अक्षरोंमें । ठांम-स्थान । २. हिक-एक । प्रह-शेषनाग । मुणी-कही। ३. लेखजै-समझिये । ४. सत-सत्य । रर-राम शब्दकी ध्वनि । ५ छ-६, है। मत-मात्रा, मति । बाम-एक छंदका नाम, स्त्री। स्यांम-स्वामी, ईश्वर । धंध-सांसारिक प्रपञ्च । म-मत ।
रे मूर्ख ! तेरी बुद्धि स्त्रीमें है । तू सांसारिक झूठे प्रपञ्चोंमें अपने मनको मत फंसा और ईश्वरका स्मरण कर । * एक मात्रासे २४ मात्रा तकके पद्यको छंद कहते हैं। २४.मात्रासे अधिक को उपछंद तथा छंद और उपछंदके मेलको दंडक छंद कहते हैं। मतान्तर से ३२ मात्राके छन्दको भी दंडक कहते हैं।
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