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रघुवरजसप्रकास
[ ११६ छंद जीरणा (जीर्णा) (म.ग.) सीता राघौ गावै सोई, जीता है जम्मारा जोई। चेता राघौ नां चीतारै, है सोई जम्मारा हा ॥ २३
छंद धांनी (र.ल.) ईद चंद्रमा अहेस, साधना करै महेस । सीतनाथ रामचंद, सीस नाम पाय बंद ॥ २४
छंद निगल्लिका (ज.ग ) दसाननं विनासनं, असेख पाप नासनं । सदाजनं सिहायकं, नमामि सीत-नायकं ॥ २५ पंचगुरु अखिर, पंचा अखिर छंद वरणण जात प्रतिस्ठा
छंद समोहा (म.ग.ग.) सीता प्राणेसं, राजा-राजेसं । गावौ स्री रामं, पावौ जे धांमं ॥ २६
हारी तगण सु करण यक, हंस भगण करणेण । नगण दुलघु, मिळ जमकहि, जस भण राघव जेण ॥ २७
२३. जीरणा (जीर्णा) इसका दूसरा नाम तीर्णा या कन्या भी है। सोई-वही। जम्मारा
जीवन । जोई-वही । चेता-चित्त । चीतारै-स्मरण करता है । २४. अहेस-(अहीस) शेषनाग। सीतनाथ (सीतानाथ)-श्री रामचन्द्र भगवान । नाम
नमा कर, झुका कर । पाय-चरण । २५. दसाननं-रावण । विनासनं-नाश करने वाला। असेख (असंख्य)-अपार । नासनं
नाश करने वाला। सिहायक-सहायक । सीत-नायकं-सीतापति । नोट-मूल हस्तलिखित प्रतिमें पांच गुरु अखिर पंचाखिर छंद वरणरण जात प्रतिष्ठा है परन्तु
पंचाक्षरा वृत्तिका शुद्ध नाम सुप्रतिष्ठा पंचाक्षरा वृत्ति है । २६. प्राणसं (प्राण+ईश)-पति। राजा-राजेसं-(राजापोंका राजा) सम्राट। जे
जिसका । धांम-स्थान, मोक्ष । २७. करण (कर्ण) दो दीर्घका नाम 55। करणेण-दो दीर्घ 5 5 से । भण-कह । जेण
जिस, जिससे ।
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